कैसा ये इश्क़ है - 1 दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है - 1

Season- 1

साल 2013
कॉलेज का लास्ट ईयर....जनवरी का महीना भीनी-भीनी ठंड सब हॉस्टल के कमरे में हीटर के सामने खामोशी से बैठ कर अपने हाथों को सकते हुऐ।सबके मन में एक अजीब सी बैचेनी थी आज, लेकिन वो एक दूसरे से बातें नही कर रहे बस शांत से बैठे मूर्तियों की तरह अपने मन के सवालों के जवाब ढूंढ रहे थे। जो उन सबके मन में उठ रहे थे,सवाल ये की आगे फाइनल सेमेस्टर आने वाले जो थे, इसके बाद उन सबकी मंजिल अलग-अलग थी।
" पढ़ाई पूरी होने के बाद आगे का सफर,जिसमे सबसे बड़ा सवाल दोस्तो से जुदाई का और फिर आगे का कैरियर अगेरा बगेरा,काफ़ी कुछ चल रहा था उन सब के मन में।

"अंजबीत सिंह कॉलेज बिक्रमगंज।।
अर्नव,सुशांत,गुड्डू,चंचल और रेनू पाँच दोस्तो का ग्रुप!!
सबकी आपस मे बहुत बनती थी।सबका एक अलग अलग ड्रीम था।
गुड्डू की चाहत कि सी ए बनेगा और खूब पैसा कमायेगा, सुशांत बिजनेस करना चाहता था,जो कि उसे बिरासत में मिला था,उसके पिता जी का अपना कपड़े का बहुत बड़ा व्यवसाय था।
चंचल को तो बैंक मैंनेजर की बनने चाह थी..!
रेनू जो टीचर बनना चाहती थी,क्योंकि उसे ज्ञान बघारने की आदत जो थी।
वैसे उन सब की कोई बड़ी ख़्वाईसे नही थी। किन्तु सब का एक लक्ष्य जरूर था,और उस लक्ष्य ने अब उन सब के दिलो दिमाग में दस्तक दे दी थी,लेकिन उनके बीच एक ऐसा भी शक़्स था। जो था अर्नव, जिसे खुद ही पता नही कि उसे करना क्या है, वो हमेशा अपनी खामोशी में ही मग्न रहता।न कल की चिंता और न आज की फिक्र वो तो बस अपनी धुन में रमता जोगी की तरह रहता।
***
इन्ही उधेड़ बुन में कब शाम हो गई है उन्हें पता ही न चला, कि अचानक रेनू ने चुप्पी को तोड़ते हुये सुशांत से, "आज केन्टीन जाने का इरादा नही है क्या...??
" तभी गुड्डू की नजर हाथ पर बंधी घड़ी की तरफ गयी ओह सात बजे गये चोंकते हुए ।
सब वहाँ से केन्टीन की ओर चल दिये। रेनू और सुशांत बहुत अच्छे दोस्त थे उनकी बहुत अच्छी केमेस्ट्री थी,मन ही मन वो दोनों एक दूसरे को पसंद भी करते थे।वैसे ही गुड्डू और चंचल भी एक दूसरे को मन ही मन बहुत प्यार करते थे। लेकिन कभी एक दूसरे को जाहिर नही होने देते।सब ने रात का डिनर लिया और वापस आ कर अपने हॉस्टल के कमरे में चले गए।अर्नव,सुशांत और गुड्डू तीनो एक ही कमरा शेयर करते थे।

अगले दिन 14 फरवरी दोपहर बारह बजे...

अर्नव अपने कमरे में शांत लेटा हुआ छत की ओर आँखे किये कुछ सोच में डूबा था...!

'तभी अचानक सुशांत उसके पास आया और बोला यार तेरे बर्थडे सेलिब्रेशन की छोटी सी पार्टी रखनी है, कल हम सबने मिलकर एक प्लान बनाया है ।
पहले हम ताराचंडी माता जी के दर्शन करने मंदिर जायेंगे फिर वहाँ से शेरशाह शुरी का मकबरा घूमेंगे फिर तीन से छह मूवी देखेंगे,आशिक़ी-2 जो पायल टॉकीज लगी है, उसके बाद सीधे होटल रिमझिम जहाँ मैंने दो टेबल बुक करा ली वहाँ पर ही केक कटेगा उसके बाद कैंडल डिनर होगा।

अर्नव अपने बेड से उठते हुये,-ओह कल 15 फरवरी है मुझे याद ही नही था।

" लेकिन हमे तो याद है,

नही,नही यार कल कोई पार्टी नही होगी और कोई कही नही जाएगा अर्नव सुशांत से,
सुशांत,वाई नॉट ?

अर्नव नही बस ऐसे ही मैं अपना जन्मदिन सैलिवेर्ट नही करता,

बट वाई ? सुशांत अर्नव से,
नही यार नही, " अर्नव सुशांत की बात को टालते हुये,

सुशांत,क्या हुआ ? आखिर क्यों नही ? अच्छा अवंतिका की याद आ रही है क्या ?
ये क्या कह रहे हो तुम मैं किसी भी अवंतिका को नही जानता झिझकते हुये,लेकिन अवंतिका का नाम सुनते ही अर्नव को मानो एक झटका लगा ,अर्नव अपने अतीत के झरोखों में चला गया चलचित्र की तरह एक के बाद एक परतें खुलने लगी और यादें ताजा होने लगी,सुशांत अर्नव को खोया देख,अरे कहा खो गए,अर्नव अगले पल अपने आपको पहले की तरह सज़ग करते हुये,मन में बड़बड़ाते हुये इसे कैसे पता चला अवंतिका के बारे में ? अवंतिका के बारे में सिर्फ और सिर्फ गुड्डू ही जानता है शायद उसने ही इसके कान भरे होंगें।

लेकिन आज सुशांत ने भी कसम खा रखी थी,कि वो बीना पूछे मानेगा नही।

"ओये मैं भी तेरा दोस्त हूँ,
तुझे क्या लगा तू मुझे नही बतायेगा तो मुझे पता नही चलेगा।
बता न यार वो कहा है। क्या हुआ था ?
'अर्नव कतराते हुये, "मैं नही जानता किसी अवंतिका को।

प्लीज प्लीज प्लीज......!!
बता न यार सुशांत अर्नव से जिद करते हुए।

अर्नव झेंपते हुये सुशांत से,-'छोड़ न यार तु भी ये फालतू की बात लेकर बैठ गया,।

तभी रेनू और चंचल आ धमके, क्या खिचड़ी पक रही दोनों में...??
तभी सुशांत रेनू से,-कल जनाब का जन्मदिन ये साहब है कि सेलिब्रेट करने से इंकार कर रहे है..!.!
तभी गुड्डू भी दाखिल हुआ कमरे में,
ओ हाय एवरीवन..क्या चल रहा है ?

" अर्नव गुड्डू की तरफ थोड़े गुस्से से देखते हुये बोला, मानना पड़ेगा तेरे पेट में खाना तो पच जाता है लेकिन बातें नही पचती।

तभी सुशांत एक बार फिर अर्नव से,-'खेर छोड़ो अवंतिका के बारे में हमे बताओ,हम आज जानकर रहेंगे।
फिर क्या था।
इतना सुनते ही गुड्डू हिचकिचाते हुये अरे क्या बोल रहा है तू ये.. ये अवंतिका कोंन है..?? गुड्डू भोला बनने की ऐक्टिंग करते हुये,रेनू और चंचल अर्नव की ओर घूरते हुये चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान लिये, "ये अवंतिका कोन है जनाब...? हमे भी बताओ यार, तुम तो छुपारुस्तम निकले।
अर्नव,-अब तुम दोनों भी शुरू हो गए इसके साथ साथ
चंचल अर्नव से,-बता दो न यार इतना क्यों भाव कहा रहे हो।

ओके ओके ओके प्लीज..देखो अब तुम सब अब शांत हो जाओ।अर्नव अपने बालों में हाथ फेरते हुये ठीक है बाबा मैं बताता हूँ।
लेकिन अगर किसी को बोरिंग लगेगा तो फिर मत कहना।ओके...
***

ये किस्सा 13 साल पीछे का है...

बात उन दिनों की है जब मैं आठ साल का था। एक दिन नाना जी घर पर आये थे। माँ अपने पिता जी को देख खुशी से झूम उठी, अगले ही पल माँ ने उनका आदर सत्कार करते हुए उन्हें बैठाया और अच्छे से जलपान कराया, तद्पश्चात माँ नाना जी से,- पिता जी माँ कैसी है ? और आपकी तवियत अब अच्छी रह रही है। नाना जी मेरी माँ से,-'हा उर्मिला,तुम्हारी माँ ठीक है,' साथ साथ मैं भी भले से हूँ,परन्तु मैं तुमसे आज कुछ मांगने आया हूँ।
हा पिता जी बोलिये न क्या चाहिए आपको ? माँ वचनवद्ध तरीके से बोलते हुये,
नाना जी माँ से,-'बात यह है कि तुम्हारी माँ और मेरा यह विचार है कि अर्नव को क्यों न अपने साथ रखे और वहीं इसकी पढ़ाई लिखाई भी चलती रहेगी और साथ-साथ तुम्हारी माँ का अकेलापन भी दूर हो जायेगा,क्योंकि पारस जब से नैनीताल शिफ्ट हुआ है,तब से तुम्हारी माँ को हर घड़ी अकेलापन का एहसास होता है।और वो हमेशा मायूस सी रहती है।
" माँ को अपने पिता जी की कही बातें सुन कर बड़ा दुख हुआ,माँ ने फ़ौरन ही मुझे नाना जी के साथ जाने की लिए पूछा तो मैंने खुशी से हा में सर हिला दिया मुझे नाना जी के यहाँ बहुत अच्छा लगता,वैसे हमारे घर से दस से बारह किलोमीटर की दूरी थी नाना जी के घर की। तब नाना जी ने माँ से,-'अगर कभी घर घूमने का मन हुआ अर्नव का तो मैं उसे अपने साथ घुमाने के लिए ले आऊँगा।फिर क्या था अगले दिन मैं नाना जी के साथ नानी जी के समक्ष खड़ा था नानी मुझे सामने देख खुशी से झूम उठी, और मुझे गोदी में उठा कर मुझे चूमने लगी।
धीरे-धीरे समय अपने समयानुसार चलता चला जा रहा था,और फिर नाना जी ने मेरा एडमिशन "डी ए बी पब्लिक स्कूल डालमियानगर, में करा दिया।
***
मेरे नाना जी का नाम मालवंत मेहरा जो सूर्यनाथ इंटर कॉलेज डिहरी में प्रोफेसर थे।डालमियानगर स्थित सुंदरविहार में एक बड़ा सा आलीशान तीन मंज़िला मकान था उनका,जिसमे नीचे नाना नानी जी और मैं रहते थे,ऊपर की मंजिले खाली रहती इसलिए ऊपर की दो मंजिल किराए से दे रखी थी। एक मामा थे पारस मेहरा जो नैनीताल में अपने सहपरिवार रहते थे।मेरे नाना जी का छोटा परिवार जिसमें तकलीफों की कोई जगह नही जहग थीं तो सिर्फ खुशियों की जिसका उस घर में अंबार लगा हुआ था।
मुझे नाना और नानी जी के साथ घर पर बहुत अच्छा लगता था, पूरा दिन कैसे गुजर जाया करता पता ही नही चलता,और वैसे भी मैं इकलौता पोता होने के कारण,उनके लाड़ प्यार का इकलौता मालिक था।जिसके कारण नाना और नानी जी का प्यार मुझ पर हमेशा बरसता रहता।क्योंकि पढ़ाई लिखाई के मामले में हमेशा अव्वल जो आता इसका पूरा श्रेय मेरे नाना जी को जाता जो कॉलेज के प्रोफेसर होने के नाते मुझे हर घड़ी गाइड करते रहते,जिसके कारण मैं उन लोगो के इतना क़रीब था।
दिन महीने साल दर साल बीतते गये,मैं बारहवीं क्लास में प्रवेश कर चुका था।
***
एक दिन शाम को घर के लैंडलाइन नम्बर पर फोन आया,तब मोबाइल फोन न के बराबर हुआ करते।
नाना जी फोन उठाते हुए,- "हैलो कौन...?
उधर से,- पापा जी मैं संध्या बोल रही हूँ। कैसे है आप ?
नाना जी,-हा बेटा हम ठीक तुम संध्या कैसी हो ? सब ठीक है न ?
संध्या मौसी नाना जी से,-जी पापा जी यहाँ सब ठीक है,आपको देखे काफी दिन गये,आपकी याद आ रही थी इसलिए फोन कर लिया अगर समय निकाल कर आप घूमने आ जाते पापा,क्योंकि भावना के पापा जी को समय नही मिल रहा है वो एक केस के मामले में काफी व्यस्त चल रहे है।उस पर उन्हें काफी कुछ स्टडी करना पड़ रहा है,कभी-कभी तो ऑफिस से काफी लेट हो जाता है उन्हें आते-आते, जिसके चलते आज कल उन्हें समय नही मिल पाता है,और घर मे भावना को अकेले छोड़ना मुनासिब नही अब वो बड़ी भी हो गई है इसलिए मेरा आना नही हो पा रहा,तो एक बार आप ही घूमने आ जाते।
नाना जी मौसी से,-ठीक है बेटा मैं आ जाऊँगा,अपना ख्याल रखना।

"वो फोन औरंगाबाद से मेरी बड़ी मौसी जी था।,

औरंगाबाद का नाम सुनकर मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई...
"अवंतिका जिसे मैंने पहली बार वहीं देखा था।,जब मैं अवंतिका से मिला तब सातवीं क्लास में था अवंतिका रहीश घराने से थी लेकिन उसमें अपने रहीश होने का जरा भी ग़ुरूर नही था।
'अवंतिका और मौसा जी के घर एक दूसरे से सटे हुये थे, दूरी कुछ ही कदमों की ही थी,
मौसा जी और अवंतिका के पिता जी की दोस्ती काफी पुरानी थी,इसी कारण दोनों परिवारों में अच्छे संबंध स्थापित हो चुके थे।
और वही दोस्ती भावना दी और अवंतिका के बीच जगह बना चुकी थी।
भावना दी मेरे मौसा जी की लड़की थीं,भावना और अवंतिका साथ में ही पढ़ते बड़े सुनहरे दिन थे वो जब में अवंतिका से मिला,बचपन का वो अल्हड़पन जिसमें दोस्ती करने के लिए समझदारी का होना या फिर लड़का लड़की होना ये सब महत्व नही रखता न अच्छे बुरे की पहचान बस दोस्त है तो दोस्त है। और फिर मैं उन दोनों की टोली में शामिल हो गया, इसी बीच मेरी अवंतिका से दोस्ती भी हो गई।
हम तीनों न जाने रोज कितनी कितनी बातें करते,बचपन में मिट्टी के घरौंदे बनाते हुये, गुड्डे-गुड़िया का खेल खेलते,अवंतिका और मेरे बीच इस दौरान काफी गहरी दोस्ती हो चुकी जिससे मेरे और अवंतिका के भीतर एक अजीब सा खिंचाव था एक दूसरे के प्रति,शायद हो न हो वो प्रेम हो पर जिस उम्र की दहलीज पर हम खड़े थे उस समय प्रेम नाम की अनुभूति को जगह देना ये भी अपने आप में बिचारनीय था,परन्तु कहीं न कहीं हम दोनों एक दूसरे की भावनाओं से परिचित हो चुके थे।लेकिन जताने का साहस न मैंने किया न ही अवंतिका ने,उस समय केवल हँसी ठिठोली और मित्रतापूर्ण अपनत्व तक ही भाव बंधन को समेटे रखा,कुछ था जो हमें एक दूसरे के सम्मुख रहने के लिए मजबूर करता।
जब भी मैं वहाँ से लौटता तब अवंतिका का चेहरा उतर जाया करता,जबतक मैं उसकी आँखों से ओझल नही होता वो मुझे अपनी छत से निहारती रहती।मुझे भी उसे छोड़ते दुख होता लेकिन मायूसी के सिवा कुछ न हाथ लगता,और बुझे मन से उससे विदा लेकर लौटना पड़ता ।
कितनी ही बातें जो हम सहेज कर रखते,और मिलने के बाद एक दूसरे से दिन भर बातें करते रहते। जो बच जाती उन्हें हम अगले दिन के लिए सम्भाल कर रखते।
***
दूसरे दिन नाना जी सुबह-सुबह तैयार होकर मेरे कमरे में,
"जन्मदिन मुबारक हो अर्नव।,
'थैंक्यू नाना जी,नींद में ही नाना जी को बोल सो गया।
अर्नव..अर्नव ओ अर्नव बेटा उठो देखो सूरज कहा चढ़ आया,उठो..चलो उठ जाओ कहते हुए वो मेरे पलंग पर आ कर बैठ गये। जमाई लेते हुये मैं करवट बदल मुँह घुमाकर फिर सो गया तब नाना जी ने अपने दोनों हाथों से मुझे उठा कर बैठा दिया,मैं अपनी आँखों को मलते हुये,-सोने दीजिये न नाना जी कुछ काम भी तो नही फिर इतनी सुबह-सुबह क्यों ? तुम भूल गये हमें तुम्हारी मौसी जी का फोन आया था न,हमे उनसे मिलने जाना है।तुम जल्दी तैयार हो जाओ हमें तुम्हारी मौसी जी के घर के लिए निकलना है अभी।

"इतना सुनते ही मेरी नींद रफूचक्कर हो गई,और मैं बेताबी से बाथरूम की तरफ चल दिया,क्योंकि मुझे अवंतिका जो मिलना था, मुझे अवंतिका से प्रेम जो था,और इस प्रेम को उसके समक्ष प्रकट जो करना था।
थोड़ी देर में तैयार होकर मैं नाना जी के साथ उनकी अम्बेसडर कार मैं बैठ औरंगाबाद के लिए निकल गये।
कुछ ही देर बाद हम औरंगाबाद पहुँच गये, दूरी ज्यादा न होने के कारण हम जल्द ही औरंगाबाद में हम एक के आलीशान दो मंजिला कोठी के सामने खड़े थे जिसके चारों ओर से पाँच फिट की दीवार से घेराव किया हुआ था,जिसके ऊपर पर छोटे-छोटे काँच के टुकड़े लगे हुये थे,जिसका बड़ा सा गेट जो अंदर से बंद था जिस पर एक नेम प्लेट नीले और रेड कलर की लगी थी, जिस पर लिखा था कमीश्नर यशवंत मेहरा,महावीर कालोनी औरंगाबाद बिहार,मैं कार से उतरा और मैंने डोरवेल के बटन को पुस किया अंदर से गेट खुला, बड़ी-बड़ी मूछें लम्बा कद घुंघराले बाल पचास साल का इंसान,रौबदार आवाज में किससे मिलना है जो शायद मौसा जी का चौकीदार था।जो मुझे नही पहचान पाया, तभी नाना जी गाड़ी से उतर कर आये जिन्हें देखते ही उस आदमी ने नाना जी को नमस्कार किया फिर हमें अंदर आने को कहा।
समाने मौसी जी खड़ी होकर मुस्कुराते हुये,अरे पापा जी आप, मौसी जी ने फोरन ही नाना जी के पास आकर उन्हें झुक कर पैर छुये और प्रणाम किया फिर मैंने भी मौसी जी को प्रणाम किया उन्होनें मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते खुश रो बेटा खूब पढ़ो लिखो और जन्मदिन ढेर सारी शुभकामनाएं बेटा।
तभी पीछे से एक आवाज आई अरे भग्यवान अंदर भी आने दोगी या दरवाजे पर ही सब बातें करोगी,वो आवाज मेरे मौसा जी की थी जो एक पुलिस कमिश्नर थे,बड़े ही आदर्श वादी औऱ मिलसार व्यक्ति थे,
मौसी जी मौसा जी को बोलते हुए,-जी आप भी न बिना बोले रह नही सकते आपको हमेशा बीच टाँग डालने की आदत जो है,
मौसी जी ने हमें अंदर बुलाया और हमारा अभिवादन किया,और बैठने के लिये बोली। मैं सोफे पर जा कर बैठ गया। तभी मौसी जी दूसरे कमरे मे गयी और हमारे लिये चाय नास्ता लेकर आयी
और नाना जी के सामने बैठ गई तभी मौसा जी भी उनके समीप आ कर बैठ गए और नाना जी से,-अब कैसी है तवियत आपकी पापा जी ?
नाना जी,-अब मैं पूरी तरह ठीक हूँ यशवंत बाबू ।
नाना जी को आये दिन बी पी की शिकायत रहती। लेकिन कुछ समय से वो स्वस्थ थे,जो उन्होंने मौसा जी को बताया।
फिर सब अपनी-अपनी बातों में मशरूफ़ हो गये।

"मेरे मन में एक बैचेनी थी अवंतिका से मिलने की किन्तु एक संकोच भी था बचपन का वो अल्हड़पन अब जो विदा ले चुका था हमसें उसकी जगह अब एक वयस्कता ने जो ले ली, पर आज भी वही उम्मीद के साथ आया था मैं अवंतिका से मिलने। एक बार फिर बचपन वाली अवंतिका से मिलूँगा।
लेकिन एक बार ये सोचकर मेरा दिल मायूस हो गया,कि अब वो बचपन नही रहा की जिसकी आड़ में मैं उससे मिलने उसके घर चला जाया करता,शायद वो भी बचपन से अलहदा हो एक संकोच उसके अंदर भी होगा,बैठे-बैठे मेरे मन में यही सब चल रहा था कि तभी भावना दी आई,और चहकते हुये,-ओह..अन्नू,हैप्पी बर्थडे कैसे हो तुम,? बड़े दिन बाद याद आई,भावना दी मुझे प्यार से अन्नू बुलाया करती थी।
"ठीक हु दी मैं भावना से कहते हुए,।

शाम ढल चुकी थी मार्च का महीना गर्मियों का एहसास होने लगा था,इसलिए हम दोनों ऊपर छत पर चले आये ऊपर से बाहर का दृश्य बेहद खूबसूरत लगता एक तरफ सड़क पर गाड़ियों की भागमभाग और उनकी लाइटों का चकाचौंध करने वाला प्रकाश जो नदी के पानी के तेज बहाव के साथ झिलमिलाता बड़ा खूबसूरत लगता सड़क से सटी एक छोटी नहर थी।

ऊपर से चांदनी रात पूरी फिजायें दूधिया प्रकाश में लिप्त हो चुकी थी,चाँद को देख मानो ऐसा लग रहा जैसे आसमान में दूधिया प्रकाश का वाला वल्ब लगा हो।तभी पीछे से कदमों की आहट हुई
मैंने पलट कर देखा तो वो अवंतिका थी।,
"हैप्पी बर्थडे अर्नव,

"थैंक्स अवंतिका,
और मैं उसे देखता रह गया काफ़ी समय बाद जो मिला था।
उसे देख भावना के चहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान स्थापित हो गई,जिसे देख मैं असहज हो गया,कि अचानक भावना ये कहते हुये नीचे चली गई ,तुम दोनों बातें करो मैं अभी आई।,

"लोग कहते फिरते हैं कि वो जिससे प्यार करते हैं

वो एक चाँद का टुकड़ा है पर आज मुझे अवंतिका को देख ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं जिसे प्यार करता हूँ, चाँद उसका एक टुकड़ा है,।।
मुझे इसी पल का बेसब्री से इंतज़ार था,पर आज अवंतिका पहले की अपेक्षा बिलकुल ही शांत थी,शायद वो अल्हड़ बचपन नही रहा अब,जिसकी आड़ में हम घण्टों बिता दिया करते थे एक दूसरे के साथ,आज हम दोनों एकदम शांत खड़े थे,शायद इसकी वजह हमारी वयस्कता हो,पहले जब भी मिला करते तो बातों की गठरी खुल कर बिखर जाती और फिर बाँधे न बँधती।
तभी अचानक अवंतिका मेरे और समीप आ कर खड़ी हो गई, और निग़ाहों को ऊपर की ओर कर सितारों की तरफ देखते हुये मुझसे,-"अर्नव हमारा साथ बस इतने दिनों का ही था,हम दोनों की मंजिल अलग-अलग है,हम अब कभी नही मिल सकतें,क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए पापा मुझे कोटा भेजने का फैसला कर चुके है ।
" हम समझ सकते है तुम्हें ये सुनकर बुरा लगेगा, किन्तु अपना प्रेम किसी को स्वीकार भी नही होगा।इसलिए इसे अब यही खत्म करना होगा और एक दूसरे को भूलकर आगे बढ़ना होगा।
बड़ी गंभीरता से मैं अवंतिका की बातें सुन रहा था और सोच रहा था,कि आई इन परिस्थितियों का जिम्मेदार कही अवंतिका का अमीर होना तो नही, जिस तरह उसने ये कहा कि अपना प्रेम किसी को स्वीकार नही होगा,क्योंकि अब पहले की तरह वो बचपन नही रहा तब नादानियाँ थी लेकिन आज वो एक समझदार और बड़ी भी हो चुकी है।
" पर अवंतिका प्रेम कोई जान समझकर तो नही पड़ता।ये तो एक अनूठा सा संयोग है,जो हमारे तुम्हारे बीच एक बंधन स्थापित कर देता है। और इसके आगे हर बंधन बौना लगता है।मुझे तो सिर्फ तुम्हारे साथ ही दुनिया नजर आती है।
अवंतिका,-प्रेम हम भी तुमसे उतना ही करते है मगर हमारे कुछ गोल है कुछ लक्ष्य है जिन्हें हमें हासिल करना चाहते है,जिसके लिए हमें कोटा जाना है,और उसके बाद ही कुछ सोचेंगें कहकर वो वहाँ से चली गई....!

【वर्तमान】

तब से मैंने आज तक अपना बर्थडे सैलिवेर्ट नही किया और न ही करना चाहता हूँ।मैं अवंतिका से बहुत प्यार करता था बैसे करता भी हूँ और करता रहूँगा...!!
सब शांत थे अर्नव का अतीत जान कर कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था।
माहौल थोड़ा ग़मगीन जरूर था पर किसी न किसी को इस शांति को तोड़ना था।
चंचल अर्नव के कंधे पर हाथ रखते हुये अर्नव से,- कहते है ना लाइफ में कोई ना कोई जरूर आता है,जो आपके पास्ट को भुलाकर आपकी लाइफ में खुशियाँ भर देता है,जिसकी उम्मीद आप छोड़ देते है।
ये इश्क़ ये खुशियाँ ये गम सब लाइफ के वो हिस्से है जिससे इंसान कभी अछूता नही रहता। अगर तुम्हारा प्यार सच्चा है तो अवंतिका जरूर मिलेंगी एक दिन।

अगर आपको मेरी रचना पसन्द आयी हो तो प्रोत्साहन के लिए आप समीक्षा जरूर दे। आप मुझे व्हाट्सएप के जरिये सुझाव देना चाहते है,

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Story is not over yet my friend, will be present soon with season 2